सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एनवी रमना की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि हर क्राइम के पीछे मंशा होना जरूरी है। मंशा को साबित करने के लिए ठोस सबूत होना चाहिए। पुलिस को साबित करना होगा कि आरोपी की मंशा आत्महत्या के लिए उकसाने का था और यह सिर्फ परिकल्पना में नहीं हो सकता कि मंशा थी। एविडेंस ऐक्ट की धारा-107 में आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला परिभाषित है। ऐसा तथ्य सामने होना चाहिए कि मंशा के तहत आरोपी उकसा रहा था।
आईपीसी की धारा-306 के मुताबिक अगर कोई किसी और को आत्महत्या के लिए ऐक्टिवली उकसाता है तो वह मामला बनेगा। यहां आत्महत्या के लिए उकसाने की मंशा होनी जरूरी है। ये मंशा जानबूझकर व कैलकुलेटिव होनी चाहिए। पुलिस अपने आप में ये मान नहीं सकती कि मंशा थी और आत्महत्या के लिए उकसाने की मंशा मन में थी। इसके लिए ठोस सबूत चाहिए। साथ ही साक्ष्य सामने दिखना चाहिए कि आत्महत्या के लिए उकसाने की मंशा मन में थी। मंशा को साबित करने के लिए रेकॉर्ड पर सबूत होना जरूरी है और ये बताया जाना जरूरी है कि याचिकाकर्ता के दिमाग में आत्महत्या के लिए उकसाने की मंशा थी ये सिर्फ परिकल्पना नहीं हो सकती बल्कि दिखना चाहिए।
22 साल पहले पंजाब के गुरचरण सिंह को अपनी पत्नी की आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में दोषी करार दिया गया था। निचली अदालत और हाई कोर्ट के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट आया था। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के दोषी करार दिए जाने के फैसले को सही ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दोषी करार दिए जाने के फैसले को खारिज कर दिया।