कोर्ट की अवमानना के कानून को गैर संवैधानिक करार देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार

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हाइलाइट्स

  • कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट ऐक्ट 1972 के कुछ प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है
  • प्रशांत भूषण, अरुण शौरी और एन. राम ने दाखिल की है सुप्रीम कोर्ट में याचिका
  • याचिका में ऐक्ट को अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ बता संवैधानिक वैधता को दी गई है चुनौती

नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट में अवमानना कानून की संवैधानिक वैधता (Constitutional validity of Contempt of Court Act) को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी, वकील प्रशांत भूषण और सीनियर जर्नलिस्ट एन. राम ने अर्जी दाखिल कर कंटेप्ट ऑफ कोर्ट ऐक्ट की वैधता को चुनौती दी है।

ऐक्ट को मौलिक अधिकार के खिलाफ बताया

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा है कि कंटेप्ट ऑफ कोर्ट संविधान के मौलिक अधिकार अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ है। याचिका में अवमानना कानून की संवैधानिक वैधता को चुनती दी गई है। वैसे प्रशांत भूषण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना के दो मामले पेंडिंग है।

याचियों ने ऐक्ट की धारा 2 (C)(1) को दी चुनौती

याचिका में कहा गया है कि कंटेप्ट ऑफ कोर्ट ऐक्ट 1972 की धारा 2 (सी)(1) को गैर संवैधानिक करार दिया जाए। याचिकाकर्ता ने कहा कि इस ऐक्ट में अवमानना का जो प्रावधान है वह संविधान की प्रस्तावना और बेसिक फीचर के खिलाफ है।

ऐक्ट की इस धारा में क्या है?

ऐक्ट की धारा-2 (सी)(1) में प्रावधान है कि अगर कोई भी लिखकर, बोलकर या इशारे में ऐसा काम करता है जिससे अदालत की बदनामी होती है या उसकी गरिमा और प्रतिष्ठा पर आंच आती है तो वह अदालत की अवमानना है।

अवमानना कानून मनमाना: याचिका

अदालत में गुहार लगाई गई है कि अवमानना का प्रावधान संविधान के विचार अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार के खिलाफ है। याची ने कहा है कि अवमानना कानून मनमाना है। याचिकाकर्ता ने कहा कि उक्त प्रावधान अनुच्छेद-14 समानता के अधिकार और अनुच्छेद-19 विचार अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन है।

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